जीने की चाहत नहीं हमें अब !
मरने का भला किसे गम है !
देखे है ज़माने के इतने रंग
हमने !
कहा किसी के लिए हम है !
लोग खेलते रहे मेरे जस्बदो से
नहीं किसी के दिल में हम है !
प्यार-मोहबत तो है एक वेबफा
कहानी !
कहा किसी की पलकेमेरे
लिए नम है !
रखा था जहा उन्हें संभल के
वही ज़ख़्म है !
ये पलके नम और ये दिल
मेरा तंग है !
खामोश से इस ज़माने में
नहीं अब इस दिल में कोई
उमंग है !
जीने की चाहत नहीं हमें अब !
भला हमारे मरने का कहा
किसी को कोई गम है !
विजय गिरी