" स्वाहा "
मैं रहता था परेसान
पत्नी बोली श्रीमान
कोई पंडित को बुलाइये
घर में पूजा-पाठ करवाइये
मैं बोला अरे भागयावन
पंडित आयेगे स्वाहा करवायेगे
फल और घी सब ले जायेगे
पत्नी समझने को कुछ तैयार नहीं थी
पंडित जी को बुलाने पर अड़ी थी
पंडित जी घर आये
पूजा-पाठ करवाये
हर बात पर स्वाहा बुलवाये
पेसो के साथ
घी भी हवन में डलवाएं
मैं बोला पंडित जी
स्वाहा का राज बताइये
पंडित जी मन ही मन
कुछ बुदबुदाये और बोले स्वाहा
मेने पंडित जी को
गाँधी छाप दिखाया
स्वाहा का राज फिर दोहराया
पंडित जी बोले
यजमान स्वाहा का
राज बताउगा अपनी आमदनी
फिर केसे पाउगा
आप यजमान है
गाँधी छाप का सवाल है
फिर भी स्वाहा का राज बताता हु
राज-राज रहे
वर्ना मेरा शराप है
पंडित जी बोले
स्वाहा का अर्थ है
लगे ना बाप का घी जले जजमान का बोलो स्वाहा !!
वाह बेहतरीन सुंदर हास्य रचना
ReplyDeletesukriya manyavar
ReplyDeletesukriya bandu
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