तडपती रही वो मेरी जिंदगी
मेरे ही नजरो के सामने और
हम कुछ कर भी ना पाए !
क्या बताए हम तुम्हे दर्द-ए
दिल दोस्तों बड़ी मुद्दत से
मिले वो हमें !
और हम थे इतने मजबूर
की दो लफ्ज प्यार के
बोल भी ना पाए !
लोग आते रहे लोग जाते रहे
कुछ तो हमारी बेबसी पे
मुस्कुराते रहे !
तडपती रही वो जिंदगी हमारी
और हम दूर से ही तनहा
बैठे अपने अस्क बहते रहे !
इस से बड़ी बेबसी भी क्या होगी
की हम अपनी तडपती हुई
जिंदगी को दो पल का साथ
दे - ना सके !
और रोना भी चाहा तो
दिल खोल के रो ना सके !
विजय गिरी
विजय भाई बेहतरीन रचना है
ReplyDeleteदोस्त अगर हम जैसे पागल मिल जाये तो जिंदगी के मायने बदल जायेंगे....
देश का कायाकल्प हो जायेगा....
satish bhai ji es bebsi ko mene khud mehsus kiya hai
ReplyDeleteaap ka bahut-bahut aabhar