इतने मगरूर थे हम हम खुद में यारो की
हर चेहरे में वफ़ा ही नज़र आया !
उठे जब हम नींद से तो खुद को बड़ा
ही तन्हा पाया !
हम तो निहारते रहे अपने चिराग को
और उसकी शमा को किसी और के
आशियाने में पाया !
बड़ा ही मगरूर था हमें अपने चिराग पे
जिसे बड़े अरमानो से अपने घर में जलाया !
हम तो सोए थे गहरी नींद में
उस चिराग को सब कुछ सोप के
उसी की शमा के साये में !
उठे जब हम नींद से तो देखा
उसी शमा ने हमारे आशियाने
को जलाया !
बड़ा ही मगरूर था हमें यारो अपनी शमा
पे जिसको हर हवा के झोको में भुझने
से बचाया !
पर उठे जब हम गहरी नींद से तो
हमने खुद को बड़ा ही तनहा पाया !
विजय गिरी
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