दिवाली पे सब को मुस्कुराते देखा
खुशियों में झूमते और गाते देखा !
किसी को साज-सज्जा तो किसी को
ताश के पत्तो पे दौलत लुटाते देखा !
वही खुशियों की भीड़ में एक माशूम
से बच्चे को भूखे तनहा मेने आशु
बहते देखा !
रौशनी और पकवान के इस पर्व पे
रात के अँधेरे में किसी को पत्तलों
से जुठा खाते देखा !
किसी को नए-नए कपड़ो में रुठते
और किसी को इठलाते देखा तो
किसी को आधे कपड़ो में ही अपनी
आबरू बचाते देखा !
झील-मिल-झील-मिल दीपों की
रौशनी में किसी को नाचते-गाते
देखा तो किसी को सड़क के किनारे
भूखा प्यासा आसू बहाते देखा !
मेने एसा भी दिवाली देखा !
मेने एसा भी दिवाली देखा !
विजय गिरी
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