मेरे भारत देश में साधू-संतो के वेश में
छुपे है कुछ असुर लम्बे-लम्बे केश में !
माया के फेर में जालसाजी के खेल में
ओढे है लाल चोला ये
खेल के खुनी खेल में !
दौलत की बेखुमारी शानो-सौकत की
महामारी में रोशन करते है अपने घरो
को उस सीता से जो बैठी है
सादी साड़ी में !
जस्बादो की अर्थी में मुर्दों की बस्ती में
छोड़ के आये है ये ज़मीर !
हम इंसानों की इस बस्ती में !
गरीबी की थाली में अबला नारी की
लाचारी में असुर बन के बैठे है
गेरुए वेश धारी में !
राम-रहीम के वेश में
जानवरों की रेस में साधू-संतो के देश में
सवेत गणवेश में एक होड़ सी मची है असुरो
की मेरे भारत देश में
मेरे भारत देश में !
विजय गिरी
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