थोड़ा मेरा तुम साथ नीभा दो !
मेरे प्रेम की कश्ती को पार
लगा दो !
बीच मझदार में है ये कश्ती मेरी
दूर बड़ी है वो प्यार की बस्ती तेरी !
थोड़ा तुम हाथ बढ़ा दो !
मेरे प्रेम की कश्ती पार लगा दो !
इस कश्ती की तुमसे एक डोर
बंधी है !
जाने केसे-केसे ये लहरें सही है !
इस कश्ती की तुमसे उम्मीद
बड़ी है !
थोड़ा सा तुम प्यार जता दो
मेरी कश्ती पार लगा दो !
दूर क्यों तू मुझसे खड़ी है !
तुम से तो सासों की ये डोर
बंधी है !
दिल के सागर में हलचल सी
मची है !
मुझको अपने पास बुला लो
थोड़ा सा तुम साथ नीभा दो
मेरी कश्ती पार करा दो !
विजय गिरी
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