बदलते समय का ये नया जमाना लगता है !
जंगल का इन्सान भी इसी शहर में आया !
मारा-मारी छिना-झपटी लोमरी की चतुराई
के सवभाव को हम इंसानों को भाया !
गंजल का इन्सान शहर में आया !
रिश्ते-नातों को करे दाग-दार
मासूम से दिल पे करे ये वार
नंगा नाचे गंजल का इन्सान !
सारे संस्कारो इंसानियत के रिश्ते को
भुलाया गंजल का इन्सान सेहर में आया !
देह्सत का खोफ है चारो और छाया !
ना कोई मान ना कोई मर्यादा !
गंजल का इन्सान शहर में आया !
बदलते समय ने ये केसा कहर बरपाया
लगता है !
गंजल का इन्सान भी शहर में आया !
विजय गिरी
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