देखो ये कलयुग का नया ज़माना !
बनावटी जीवन में निराशा का
अँधियारा !
फैशन के इस दौर में संस्कारो को
भूल जाना !
भिखरते हुए रिश्तो पे थिरकता ये
नया ज़माना !
रेंग रहा वो संस्कार तड़प रहा है वो
प्यार !
ऊँगली पकड़ जिसने चलना
हमें सिखाया !
चमकती सुबह-धधकती शाम में
गुम हो गया वो प्यार भरा रिश्ता
निभाना !
कितना खुश है नंगा नाचता ये
कलयुगी नया ज़माना !
विजय गिरी
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