Monday, 25 November 2013
Friday, 4 October 2013
तलाश
इस एक बेगाने से शहर में !
मै अपना एक मुकम्मल
मुकाम ढूंड रहा हु !
दिए है जिस बेवफा ने
मेरे दिल पर-ता-उम्र के लिए ज़ख़्म !
उस बेवफा के कदमो के
निशान ढूंड रहा हु !
इस एक बेगाने से शहर में !
इस एक बेगाने से शहर में !
मै एक अपना मुकम्मल
कब्रिस्तान ढूंड रहा हु !
विजय गिरी
मै अपना एक मुकम्मल
मुकाम ढूंड रहा हु !
दिए है जिस बेवफा ने
मेरे दिल पर-ता-उम्र के लिए ज़ख़्म !
उस बेवफा के कदमो के
निशान ढूंड रहा हु !
इस एक बेगाने से शहर में !
मै एक अपना मुकम्मल
कब्रिस्तान ढूंड रहा हु !
विजय गिरी
इस एक बेगाने से शहर में !
मै एक अपना मुकम्मल
कब्रिस्तान ढूंड रहा हु !
विजय गिरी
Friday, 19 July 2013
!! मेरी बेबसी !!
मेरे फैसलों से हैरान रह जाते है सब !
अक्सर गम खरीद कर प्यार निभाता हू !
इसलिए शायद "विजय"को ठुकराते है सब !
करते है लोग "विजय"से बेवफाई
और मेरे बहते हुए अश्को से अपने
दिल की प्यास बुझाते है सब !
छोड़ देते है अक्सर लोग सुन-सान
राहों में "विजय" का साथ !
और दूर से ही "विजय" की बेबसी पर
मुस्कुराते है सब !
VIJAY GIRI
Wednesday, 26 June 2013
!! प्राक्रतिक संदेह !!
खो रही नमी ये भूमि
सूरज की तपीश अभी बाकी है !
सिमट रही ये नदिया ,अब तो वारीश
की भी कमी खलने वाली है !
संभल जाये हम मानव
ये वृछ ही जिंदगी हमारी है !
मत करो खिलवाड़ इस प्राक्रतिक से
जाने कैसी -कैसी विपदा आने वाली है !
आगाह कर रही ये प्राक्रतिक हमें
कही सुखा तो कही पनी-पानी है !
खो रही प्रक्रति अपना संतुलन
कही भूकंप तो कही तबाही है !
अब तो संभल जाये हम
इसी वृछ इसी नदियों से प्रक्रति
और प्रक्रति से ही जिंदगी हमारी है !
विजय गिरी
Tuesday, 25 June 2013
======>अलविदा <========
मै तेरी दुनीया से अब बहुत जा रहा हू !
हो कर बड़ा मै बड़ा मशहुर जा रहा हू !
भटकता रहा मै तेरी चाहत में !
हो कर बड़ा अब मै मजबूर जा रहा हु !
ना होगी अब कभी मुझे तुमसे शीकायत !
ना होगी तुम्हे अब कभी कोई मुझसे
कोई शीकायत !
खुश रहना सदा तुम अपनी दुनिया में !
लिए अपने दिल में एक एसी मै उम्मीद
जा रहा हु !
सोचना तुम मै ही था बेवफा !
दिल में लिए तेरी यादे तुम्हे
अपने दिल के लिए करीब जा रहा हु !
नीभा के सारे इस ज़माने के
मै दस्तूर जा रहा हु !
मै तेरी दुनीया से अब बहुत
दूर जा रहा हु !
VIJAY GIRI
Tuesday, 11 June 2013
Monday, 13 May 2013
ना जाने मुझे कितने ज़ख़्म मिले
फूलो के सेज पर कांटे हर-दम मिले !
किस-किस से करू मै शिकवा यारो
कही प्यार तो कही वफ़ा के दामन
मै कांटे मिले !
हर मोड़ पे मुझे एक नए चेहरे मै
छुपे पुराने ज़ख़्म मिले !
देख मेरी हालत पिघल गए वो पत्थर भी
अक्सर मुझे ऐसे हम-सफ़र मिले !
धुल भरी आंधियो मे बढ़ते रहे ये कदम
गरदिस मे तो मेरे सितारे हर-दम मिले !
लोग तो किस्मत को आजमाते है यारो
किस्मत लिखने वाले मुझे आजमाते रहे
अरे टूट गई उनकी भी कलम !
जो इस दिल पे इतने ज़ख़्म मिले
फूलो के सेज पर कांटे हर-दम मिले !
किस-किस से करू मै शिकवा यारो
कही प्यार तो कही वफ़ा के दामन
मै कांटे मिले !
हर मोड़ पे मुझे एक नए चेहरे मै
छुपे पुराने ज़ख़्म मिले !
देख मेरी हालत पिघल गए वो पत्थर भी
अक्सर मुझे ऐसे हम-सफ़र मिले !
धुल भरी आंधियो मे बढ़ते रहे ये कदम
गरदिस मे तो मेरे सितारे हर-दम मिले !
लोग तो किस्मत को आजमाते है यारो
किस्मत लिखने वाले मुझे आजमाते रहे
अरे टूट गई उनकी भी कलम !
जो इस दिल पे इतने ज़ख़्म मिले
विजय गिरी
कुछ अंकल जी बालो में खेजब लगते
तो बेटा जी भी राह चलती लडकियों
को देख सिटी बजाते !
कुछ आंटी जी लाली पोतती
तो बिटिया रानी भी
छोटे-छोटे कपड़ो के फेसन में इठलाती !
तो बिटिया रानी भी
छोटे-छोटे कपड़ो के फेसन में इठलाती !
कुछ लड़के लोग भी नहीं है कम
गर्ल फ्रेंड के लिए तो
इनकी जेबे रहती है
हमेशा गर्म !
गर्ल फ्रेंड के लिए तो
इनकी जेबे रहती है
हमेशा गर्म !
कुछ लडकिया भी अपनी अदाए दिखाती है
अपने बॉय फ्रेंड की गाड़ी पे फेवी क़ुइक की तरह
चिपकी नज़र आती है !
अपने बॉय फ्रेंड की गाड़ी पे फेवी क़ुइक की तरह
चिपकी नज़र आती है !
घटती है कोई घटना तो
हम सब शर्म की बाते बतियाते है !
उस समय लोग शायद अपने संस्कार
अपने कर्मो को भूल जाते है !
विजय गिरी
हम सब शर्म की बाते बतियाते है !
उस समय लोग शायद अपने संस्कार
अपने कर्मो को भूल जाते है !
विजय गिरी
बलात्कार-अत्याचार क्यों ?
ये इन्सान क्यों हैवान होता जा रहा है
ये मानवता--इन्सानियत का रिश्ता
क्यों तार-तार होता जा रहा है !
ये माशूम सी बच्चीयो पर क्यों परहार
अत्याचार-बलात्कार का
होता जा रहा है !
जिस माशूम का नहीं होता कोई दोष !
क्यों उनके दिलो पर ता-उम्र के लिए
ज़ख्मो का निशान होता जा रहा है !
ये भारत देश तो है !
राम-रहीम -मीरा-राधा के संस्कारो वाला !
अपनी रीती-रिवाजो से जाना-पहचाना !
फिर क्यों इंसानों में जानवरों सा
संस्कार होता जा रहा है !
ये इन्सान क्यों हैवान होता जा रहा है
ये मानवता--इन्सानियत का रिश्ता
क्यों तार-तार होता जा रहा है !
ये माशूम सी बच्चीयो पर क्यों परहार
अत्याचार-बलात्कार का
होता जा रहा है !
जिस माशूम का नहीं होता कोई दोष !
क्यों उनके दिलो पर ता-उम्र के लिए
ज़ख्मो का निशान होता जा रहा है !
ये भारत देश तो है !
राम-रहीम -मीरा-राधा के संस्कारो वाला !
अपनी रीती-रिवाजो से जाना-पहचाना !
फिर क्यों इंसानों में जानवरों सा
संस्कार होता जा रहा है !
VIJAY GIRI
हे नारी
चंडी का रूप ले अब तू
अत्याचारियों का संघार कर
हाथो में ले कर खड़क
पापियों के लहू से अपना
सिंगार कर !
नहीं आयेगे अब कोई केशव तेरे
ना किसी अपने लाल पर एतबार कर
थाम लो अब अपने हाथो में खड़क
इस कलयुग के रकछशो का विनाश कर !
समझते है जो नारी की ममता को लाचारी
शीतल-निर्मल हिरदय वाली कन्या को कायरता
की निशानी !
ऐसे पापिओ -बलात्कारियो पर
अपनी शक्ति का परहार कर !
हे नारी
चंडी-काली का रूप ले अब तू
अत्याचारियों-बल्त्कारियो के
लहू से अपना सिंगार कर !
चंडी का रूप ले अब तू
अत्याचारियों का संघार कर
हाथो में ले कर खड़क
पापियों के लहू से अपना
सिंगार कर !
नहीं आयेगे अब कोई केशव तेरे
ना किसी अपने लाल पर एतबार कर
थाम लो अब अपने हाथो में खड़क
इस कलयुग के रकछशो का विनाश कर !
समझते है जो नारी की ममता को लाचारी
शीतल-निर्मल हिरदय वाली कन्या को कायरता
की निशानी !
ऐसे पापिओ -बलात्कारियो पर
अपनी शक्ति का परहार कर !
हे नारी
चंडी-काली का रूप ले अब तू
अत्याचारियों-बल्त्कारियो के
लहू से अपना सिंगार कर !
VIJAY GIRI
मै अब तक था एक कोरे कागज की तरह !
जो तुमने एक नज़र देखा तो मुझे
शायर बना दिया !
मै जो डूबा एक बार तेरी झील सी आखो में !
जो मै डरता था किनारों से, अब तैरना
सीखा दिया !
ये तो है एक तेरी सासों की महक !
जो इस सुने से दिल में !
तुमने शोला जगा दिया !
अरे मै तो सोया था चैन से अपनी मजार पर !
तूमने दो फुल चढ़ा के मुझको जगा दिया !
तेरी चाहत ने मुझे जीना सीखा दिया !
विजय गिरी
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