सुकून मीलता है उस मैली आचल में जहा
सारा प्यार उभर आता है !
अपने एक-एक बूंद से जो सीचती हमें वो
आचल माँ का कहलाता है !
सर पे रहता बहना का हाथ तो दुआ
खुद लग जाती है !
देख सावन में बहन के हाथो की मेहँदी
मौत भी डर जाती है !
छल-कपट ना कोई सवार्थ हर दुःख में
दे जो साथ वो ममता की मूरत तू नारी
ही कहलाती है !
हे जननी-हे नारी किस भाषा में करू
वयाख्यान मै तुम्हारी ?
शब्द कम पड़ जाते है !
नत-मस्तक ये शीस मेरे हो जाते है !
विजय गिरी
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