Wednesday 21 March 2012

तुम-बिन


तुम-बिन
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कोई ख़ुशी अब कोई गम नहीं है !
तुमसे जुदाई का अब कोई इस
दिल में ज़ख़्म नहीं है !

सारे कश्मे-वादे टूट गए !
अब इस दिल में भी कोई 
उमंग नहीं है !

हमने पनाह ले-ली अब गहरी 
नींद की आगोश में !
बेवफा हो तुम किसी दिल के 
कातिल हम नहीं है !

कितनी सिद्दत से चाहा तुम्हे !
तुम-बिन हम केसे रह पाते
ऐ- मेरी जिंदगी !

तुमसे जुदा हो कर अब ज़िन्दा
हम नहीं है !

विजय गिरी 

Sunday 4 March 2012

मेरी दीवानगी

       

   मेरी दीवानगी 
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कतरा -कतरा बहते मेरे अस्क
और मै बड़ा मशहूर हो गया !
बड़ी अजीब सी है मेरी दीवानगी 
मै खुद से दूर हो गया !

पल-पल छलकती मेरी आखे 
हर सपना अस्को में खो गया 
मै अब तक भटक रहा उसकी 
ही चाहत  में मै दीवाना मशहूर 
हो गया !

जब से मिल कर बिछड़े वो हम से
मेरे लबो को गुन-गुनाना आ गया 
अरे थोडा मशहूर  क्या हुए हम
की एस ज़माने को दिल जलना 
आ गया !

कतरा -कतरा बहते मेरे अस्क
और मै बड़ा मशहूर हो गया !
बड़ी अजीब सी है मेरी दीवानगी 
मै खुद से दूर हो गया !


विजय गिरी 


Saturday 3 March 2012

कशक


कसक 
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इस दिल में एक कशक सी रहती है !
जीन पलकों ने संजोये थे सपने 
वो पलके भी अब रोते-रोते 
सोती है !

ना जाने लगी ये किसकी नज़र 
जो खिले हुए बागो में भी 
वो फूलो पे उदासी सी रहती है !

हरा-भरा है घर आँगन मेरा 
हर कोने से किलकारी गूंजती है !

पर जाने क्यों हर-पल मुझे एक
कमी सी इस दिल में खलती है !

हर सुबह की किरणों में मुझे 
एक उम्मीद की रौशनी आती है !
पर ढलती हुई शामो में ये सासे
थम सी जाती है !

रस्ता देख रही ये सुनी नज़रे 
ये पलके भी छलक-छलक 
सी जाती है !

बिता हुआ हर वो लम्हा यादो 
में एक कसक सी दे जाती है !
विजय गिरी