Sunday 12 January 2014



" स्वाहा "
मैं रहता था परेसान 
पत्नी बोली श्रीमान
 कोई पंडित को बुलाइये 
घर में पूजा-पाठ करवाइये

मैं बोला अरे भागयावन 
पंडित आयेगे स्वाहा करवायेगे
 फल और घी सब ले जायेगे

पत्नी समझने को कुछ तैयार नहीं थी 
पंडित जी को बुलाने पर अड़ी थी
पंडित जी घर आये 
पूजा-पाठ करवाये 
हर बात पर स्वाहा बुलवाये
पेसो के साथ
 घी भी हवन में डलवाएं
मैं बोला पंडित जी 
स्वाहा का राज बताइये 
पंडित जी मन ही मन 
कुछ बुदबुदाये और बोले स्वाहा

मेने पंडित जी को 
 गाँधी छाप दिखाया
 स्वाहा का राज फिर दोहराया

पंडित जी बोले 
यजमान स्वाहा का 
राज बताउगा अपनी आमदनी 
फिर केसे पाउगा
 आप यजमान है
 गाँधी छाप का  सवाल  है
 फिर भी स्वाहा का राज बताता हु 
राज-राज रहे 
वर्ना मेरा शराप है
 पंडित जी बोले
स्वाहा का अर्थ है
लगे ना बाप का घी जले जजमान का बोलो स्वाहा !!


हमें चाहने वाले 
जाने क्यों हमसे दूर हो गए !
लगा के दिल जाने क्यों
  हम उन्हें पाने को मजबूर हो गए !
जाने क्यों बढ़ती गई दुरिया हमसे
 हम उन्हें पाने कि कोशिश में
 आशिक बड़े ही मशहूर हो गए !



या मेरे खुदा 
ये तूने हुश्न वालो को 
इतना पत्थर दिल क्यों बनाया है ?
जिसे मिली तेरी जितनी रहमो-करम
 उस हुस्न वालो ने ! 
दिवानो पर उतना ही जुल्म ढाया है !


इश्क़
 कमब्खत ये इश्क भी क्या चीज है 
ख़वाबों में आकर 
दीवानो को तड़पती है ये इश्क !

सामने आने पर 
जाने क्यों शर्माती 
और नज़रे चुराती है ये इश्क !

माना कि ख़ुदा ने 
बड़ी ही फुर्सत से नवाजा है 
इस इश्क को !

 दीवानों ने भी तो 
अपने ईमान अपनी शिदद्त से
 चाहा है इस इश्क को !

 फिर भी जानें क्यों 
दीवानो को बार-बार 
आजमाती है ये इश्क !


भारत माता के लाल तुम्ही हो 
भरस्टाचार के खिलाफ उठने वाले 
वो इन्कलाब तुम्ही हो 

ऐ मेरे आज़ाद देश के गुलाम सिपाहियो 

ये चीन-पाकिस्तान के छल से
 तुम विचलित ना हो 

अगर खोल दिए जाये हाथ तुम्हारे 
 तो दुश्मनो का सर कलम करने वाले 
वो समसिर तुम्ही हो !