Wednesday 26 June 2013


!! प्राक्रतिक संदेह !!

खो रही नमी ये भूमि 
सूरज की तपीश अभी बाकी है !
सिमट रही ये नदिया ,अब तो वारीश 
की भी कमी खलने वाली है !

संभल जाये हम मानव 
ये वृछ ही जिंदगी हमारी  है !
मत  करो खिलवाड़ इस प्राक्रतिक से 
जाने कैसी -कैसी विपदा आने वाली है !

आगाह  कर रही ये प्राक्रतिक हमें 
कही सुखा तो कही पनी-पानी है !
 खो रही प्रक्रति अपना संतुलन 
कही भूकंप तो कही तबाही है !

अब तो संभल जाये हम 
इसी वृछ इसी नदियों से प्रक्रति 
और प्रक्रति से ही जिंदगी हमारी है !

विजय गिरी   

Tuesday 25 June 2013



अब तो मौत भी नहीं आती यारो !
जाने किस अजनबी ने अपना
दामन मेरे लिए फैलाय हुए है !
...

हमने समझा था जिसे प्यार में
जिसे अपनी जिंदगी !

एक दिन मालूम पड़ा उसी जिंदगी
ने हमारे लिए मौत की बिसात
 
बिछाए हुए है ! 


 VIJAY GIRI





======>अलविदा <========
 

मै तेरी दुनीया से अब बहुत जा रहा हू !
 हो कर बड़ा मै बड़ा मशहुर जा रहा हू !
 भटकता रहा मै तेरी चाहत में !
 हो कर बड़ा अब मै मजबूर जा रहा हु !

 

ना होगी अब कभी मुझे तुमसे शीकायत !
ना होगी तुम्हे अब कभी कोई मुझसे
कोई शीकायत !
खुश रहना सदा तुम अपनी दुनिया में !
लिए अपने दिल में एक एसी मै उम्मीद
जा रहा हु !


सोचना तुम मै ही था बेवफा !
दिल में लिए तेरी यादे तुम्हे 
 अपने दिल के लिए करीब जा रहा हु !


नीभा के सारे इस ज़माने के 
 मै दस्तूर जा रहा हु !
मै तेरी दुनीया से अब बहुत 
 दूर जा रहा हु ! 
 
VIJAY GIRI