Thursday 10 October 2013



अब इस ज़माने में कहा किसी का
कोई साथ निभाता है !
अँधेरी राहों में तो अपना साया
भी साथ छोड़ जाता है !

कहते है हम जिसे अपनी ज़िन्दगी
एक दिन वो ज़िन्दगी ही
हमें धोखा दे जाता है


विजय गिरी



Friday 4 October 2013






तलाश 
इस  एक  बेगाने से शहर में !
मै अपना एक मुकम्मल
मुकाम ढूंड रहा हु !

दिए है जिस बेवफा ने
मेरे दिल पर-ता-उम्र  के लिए ज़ख़्म !
उस बेवफा के कदमो के
 निशान ढूंड रहा हु !

इस एक बेगाने से शहर में !
मै एक अपना मुकम्मल
कब्रिस्तान ढूंड रहा हु !
विजय गिरी
 
 

इस एक बेगाने से शहर में !
मै एक अपना मुकम्मल
कब्रिस्तान ढूंड रहा हु !
विजय गिरी

Wednesday 2 October 2013


 ऐ दोस्तों अपने अन्दर के जस्बाद  को जगा लो
 तुम्हे भी प्यार हो जायेगा
 दिल जब कैद हो जायेगा किसी की चाहत में
 वही प्यार  तुम्हे फिर ठुकराएगा
कशम उस खुदा की ऐ दोस्तों
उन ज़ख्मो से तू भी एक शायर हो  जायेगा

विजय गिरी