Monday 13 May 2013



 
मेरे पास वो लफ्ज नहीं जो तेरा दिल जीत सकु !
मेरे पास वो दौलत नहीं जो तुम्हारे लिए खुशीया
खरीद सकु !

मेरे पास तो सिर्फ एक दिल है !
जिसमे हर-पल तुम्हे संजोय rakh सकु 
                 
                     VIJAY GIRI

 
 
ठोकर लगी है एक ज़िन्दगी से !

मै मुस्कुराना भूल गया !

समेटे हुए हु उसकी कुछ पुरानी

यादो को !
मै खवाब सजाना भूल गया !

वो कहते थे हम ता उम्र साथ

निभायेगे तुम्हारा !
एक आंधी चली और

उनसे साथ मेरा छुट गया !

विजय गिरी



 
ना जाने मुझे कितने ज़ख़्म मिले
फूलो के सेज पर कांटे हर-दम मिले !

किस-किस से करू मै शिकवा यारो
कही प्यार तो कही वफ़ा के दामन
मै कांटे मिले !
हर मोड़ पे मुझे एक नए चेहरे मै
छुपे पुराने ज़ख़्म मिले !

देख मेरी हालत पिघल गए वो पत्थर भी
अक्सर मुझे ऐसे हम-सफ़र मिले !
धुल भरी आंधियो मे बढ़ते रहे ये कदम
गरदिस मे तो मेरे सितारे हर-दम मिले !

लोग तो किस्मत को आजमाते है यारो
किस्मत लिखने वाले मुझे आजमाते रहे
अरे टूट गई उनकी भी कलम !
जो इस दिल पे इतने ज़ख़्म मिले
 
विजय गिरी


कुछ अंकल जी बालो में खेजब लगते
तो बेटा जी भी राह चलती लडकियों
को देख सिटी बजाते !
कुछ आंटी जी लाली पोतती
तो बिटिया रानी भी
छोटे-छोटे कपड़ो के फेसन में इठलाती !
कुछ लड़के लोग भी नहीं है कम
गर्ल फ्रेंड के लिए तो
इनकी जेबे रहती है
हमेशा गर्म !
कुछ लडकिया भी अपनी अदाए दिखाती है
अपने बॉय फ्रेंड की गाड़ी पे फेवी क़ुइक की तरह
चिपकी नज़र आती है !
घटती है कोई घटना तो
हम सब शर्म की बाते बतियाते है !
उस समय लोग शायद अपने संस्कार
अपने कर्मो को भूल जाते है !

विजय गिरी



 
                                                 

!! दिल चाहता है  !!

दिल चाहता है
एक बार अपने प्यार
को पा लू !
अपने प्यार के लिए
हार हसरतों को मिटा दू
पर अपने उस प्यार को पा लू !
दिल चाहता है !
ना मिले वो प्यार
तो मौत को अपने
सीने से लगा लू
पर अपने प्यार को
पा लू !
विजय गिरी
— with Mak Kalal, Soniya
बलात्कार-अत्याचार क्यों ?

ये इन्सान क्यों हैवान होता जा रहा है
ये मानवता--इन्सानियत का रिश्ता
क्यों तार-तार होता जा रहा है !

ये माशूम सी बच्चीयो पर क्यों  परहार
अत्याचार-बलात्कार का
होता जा रहा है !

जिस माशूम का नहीं होता कोई दोष !
क्यों उनके दिलो पर ता-उम्र के लिए
ज़ख्मो का निशान होता जा रहा है !

ये भारत देश तो है !
राम-रहीम -मीरा-राधा के संस्कारो वाला !
अपनी रीती-रिवाजो से जाना-पहचाना !

फिर क्यों इंसानों में जानवरों सा
संस्कार होता जा रहा है !

VIJAY GIRI




 हे नारी

चंडी का रूप ले अब तू
अत्याचारियों का संघार कर
हाथो में ले कर खड़क
पापियों के लहू से अपना
सिंगार कर !

नहीं आयेगे अब कोई केशव तेरे
ना किसी अपने लाल पर एतबार कर
थाम लो अब अपने हाथो में खड़क
इस कलयुग के रकछशो का विनाश कर !

समझते है जो नारी की ममता को लाचारी
शीतल-निर्मल हिरदय वाली कन्या को कायरता
की निशानी !
ऐसे पापिओ -बलात्कारियो पर
अपनी शक्ति का परहार कर !

हे नारी
चंडी-काली का रूप ले अब तू
अत्याचारियों-बल्त्कारियो के
लहू से अपना सिंगार कर !
   

         VIJAY GIRI



 

मेरी दीवानगी
तेरी चाहत ने मुझे जीना सीखा दिया
ठहरे हुए इस दिल में एक हलचल
मचा दिया !

  मै अब तक था एक कोरे कागज की तरह !
जो तुमने एक नज़र देखा तो मुझे
शायर बना दिया !

मै जो डूबा एक बार तेरी झील सी आखो में !
जो मै डरता था किनारों से, अब तैरना
सीखा दिया !

ये तो है एक तेरी सासों की महक !
जो इस सुने से दिल में !
तुमने शोला जगा दिया !

अरे मै तो सोया था चैन से अपनी मजार पर  !

तूमने दो फुल चढ़ा के मुझको  जगा  दिया !

तेरी चाहत ने मुझे जीना सीखा दिया !

                                     विजय गिरी





तेरा नाम
मेरे हाथों की लकीरों में तेरा नाम लिखा था  

तुम्हे पाने के बाद !
मेने अपने प्यार पर बड़ा गुमान
रखा था !

मुझे कहा मालूम था !
तुम निकलोगी बेवफा !
किस्मत मे भी मेरी मौत की वजह
तेरा ही नाम लिखा था !

विजय गिरी