Wednesday 26 June 2013


!! प्राक्रतिक संदेह !!

खो रही नमी ये भूमि 
सूरज की तपीश अभी बाकी है !
सिमट रही ये नदिया ,अब तो वारीश 
की भी कमी खलने वाली है !

संभल जाये हम मानव 
ये वृछ ही जिंदगी हमारी  है !
मत  करो खिलवाड़ इस प्राक्रतिक से 
जाने कैसी -कैसी विपदा आने वाली है !

आगाह  कर रही ये प्राक्रतिक हमें 
कही सुखा तो कही पनी-पानी है !
 खो रही प्रक्रति अपना संतुलन 
कही भूकंप तो कही तबाही है !

अब तो संभल जाये हम 
इसी वृछ इसी नदियों से प्रक्रति 
और प्रक्रति से ही जिंदगी हमारी है !

विजय गिरी   

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