Tuesday 13 December 2011

कभी ख़ुशी-कभी गम



ना पास आते है ! ना दूर जाते
है वो !
जब भी दूर जाना चाहा तो 
मेरा हाथ थाम लेते है वो !

इस कशमकश को क्या
समझू मै !
जब भी थामना चाहा उनका 
साथ !
अपना दामन छुड़ा लेते 
है वो !

जब भी चाहा उनको भूलना
खवाबो में  आ  के मुस्कुरा 
देते है वो !
जब भी चाहा हमने उनसे 
रूबरू होना तो अपनी नज़रे
चुरा लेते है वो !

करू उन का शुक्रिया जो चन्द
पलों की खुशिया दे जाते 
है वो !
या करू उन से शिकायत जो
मेरे हँसते हुए पलकों को रुला 
जाते है वो ?

विजय गिरी 


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