Friday 23 December 2011

किसे गम है ?



जीने की चाहत नहीं हमें अब !
मरने का भला किसे गम है !

देखे है ज़माने के इतने रंग 
हमने !
कहा किसी के लिए हम है !
लोग खेलते रहे मेरे जस्बदो से
नहीं किसी के दिल में हम है !

प्यार-मोहबत तो है एक वेबफा 
कहानी !
कहा किसी की पलकेमेरे
लिए  नम है !

रखा था जहा उन्हें संभल के 
वही ज़ख़्म है !
ये पलके नम और ये दिल
मेरा तंग है !

खामोश से  इस ज़माने में 
नहीं अब इस दिल में कोई 
उमंग है !
जीने की चाहत नहीं हमें अब !
भला हमारे मरने का कहा 
किसी को कोई गम है !
विजय गिरी 


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