माँ तुम दिल बनकर
आज भी सीने में धड़कती हो
ठोकर लगने पर
पलकों से आज भी तुम
बरसती हो !
मेरी हर पीडा तुम ही
समझती हो
अपनी ममता कि खुशबु से
हर दर्द मेरा हरती हो !
माँ तुम नब्ज़ बनकर
मेरी रगो में बहती हो
ख़ुदा के घर में भी
मेरे बगैर माँ उदास
तुम बहुत रहती हो !
तमाम रिस्ते से बेहतर
तुम प्यार मुझे करती हो
माँ तुम दिल बनकर
आज भी मेरे
सीने में धडकती हो !
विजय गिरी
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