Tuesday 15 July 2014


माँ तुम दिल बनकर
 आज भी सीने में धड़कती हो
 ठोकर लगने पर
 पलकों से आज भी तुम
 बरसती हो !

 मेरी हर पीडा तुम ही 
समझती हो 
अपनी ममता कि खुशबु से
 हर दर्द मेरा हरती हो !

माँ तुम नब्ज़ बनकर
 मेरी रगो में बहती हो 
 ख़ुदा के घर में भी
 मेरे बगैर माँ उदास
 तुम बहुत रहती हो !

 तमाम रिस्ते से बेहतर
 तुम प्यार मुझे करती हो
 माँ तुम दिल बनकर
 आज भी मेरे
 सीने में धडकती हो !

विजय गिरी

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