Tuesday 15 July 2014

 
*******माँ******

ऐहसास तेरा हर पल दिल में खलता है
ऐ माँ याद कर प्यार तेरा
मेरी पलकों से अब दर्द छलकता है !!

बहुत दौलत-शोहरत पाया मेने
रातें अब करवट बदल-बदल गुजरता है
ऐ माँ तेरे आँचल का वो साया अब खलता है !!

संजोता रहा कागज के चंद टुकड़ो को
भूख ना मिटा पल-भर के लिए
अब ये दिल तड़पता है
ऐ माँ तेरे हाथो का अब वो
निवाला खलता है !!

इस भीड़ भड़ी दुनियाँ में
अब अकेला पन लगता है
ख़ुदा के घर आ कर तेरी
गोदी में सर रखकर सोने को दिल करता है

ऐ माँ याद कर प्यार तेरा
अब मेरी पलकों से दर्द छलकता है !!

विजय गिरी

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