Saturday 1 October 2011

तन्हा



इतने मगरूर थे हम हम खुद में यारो की 
हर चेहरे में वफ़ा ही नज़र आया !
उठे जब हम नींद से तो खुद को बड़ा 
ही तन्हा पाया !

हम तो निहारते रहे अपने चिराग को 
और उसकी शमा को किसी और के 
आशियाने में पाया !

बड़ा ही मगरूर था हमें अपने चिराग पे 
जिसे बड़े अरमानो से अपने घर में जलाया !

हम तो सोए थे गहरी नींद में 
उस चिराग को सब कुछ सोप के 
उसी की शमा के साये में  !

उठे जब हम नींद से तो देखा 
उसी शमा ने हमारे आशियाने 
को जलाया !

बड़ा ही मगरूर था हमें यारो अपनी शमा 
पे जिसको हर हवा के झोको में भुझने 
से बचाया !

पर उठे जब हम गहरी नींद से तो 
हमने खुद को बड़ा ही तनहा पाया !

         विजय गिरी

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