Sunday 2 October 2011

जंगल का इन्सान



बदलते समय का ये नया जमाना लगता है !
जंगल का इन्सान भी  इसी  शहर में आया !

 मारा-मारी छिना-झपटी लोमरी की चतुराई 
के सवभाव को हम इंसानों को भाया !
गंजल का इन्सान  शहर में आया !

रिश्ते-नातों को करे दाग-दार 
मासूम से दिल पे करे ये वार
नंगा नाचे गंजल का इन्सान !

सारे संस्कारो इंसानियत के रिश्ते को 
भुलाया गंजल का इन्सान सेहर में आया !

देह्सत का खोफ है चारो और छाया !
ना कोई मान ना कोई मर्यादा !
गंजल का इन्सान शहर में आया !

बदलते समय ने ये केसा कहर बरपाया 
लगता है !
गंजल का इन्सान भी शहर में आया !

     विजय गिरी

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