Friday 14 October 2011

मेरे भारत देश में



मेरे भारत देश में साधू-संतो के वेश में 
छुपे है कुछ असुर लम्बे-लम्बे केश में !

माया के फेर में जालसाजी के खेल में 
ओढे है लाल चोला ये 
खेल के खुनी खेल में !

दौलत की बेखुमारी शानो-सौकत की
महामारी में रोशन करते है अपने घरो 
को उस सीता से जो बैठी है 
सादी  साड़ी  में !

जस्बादो की अर्थी में मुर्दों की बस्ती में 
छोड़ के आये है ये ज़मीर !
हम इंसानों की इस बस्ती में !

गरीबी की थाली में अबला नारी की 
लाचारी में असुर बन के बैठे है 
गेरुए वेश धारी में !

राम-रहीम के वेश में 
जानवरों की रेस में साधू-संतो के देश में 
सवेत गणवेश में एक होड़ सी मची है असुरो 
की मेरे भारत देश में 
मेरे भारत देश में !

विजय गिरी








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