Thursday 27 October 2011

एक दिवाली एसी भी



 दिवाली पे सब को मुस्कुराते देखा 
खुशियों में झूमते और गाते देखा !

किसी को साज-सज्जा  तो किसी को 
ताश के पत्तो पे  दौलत लुटाते देखा !

वही खुशियों की भीड़ में एक माशूम
से बच्चे को भूखे तनहा मेने आशु 
बहते देखा !

रौशनी और पकवान के इस पर्व पे 
रात के अँधेरे में किसी को पत्तलों 
से जुठा खाते देखा !

किसी को नए-नए कपड़ो में रुठते 
और किसी को इठलाते देखा तो 
किसी को आधे कपड़ो में ही अपनी 
आबरू बचाते देखा !

झील-मिल-झील-मिल दीपों की 
रौशनी में किसी को नाचते-गाते 
देखा तो किसी को सड़क के किनारे 
भूखा प्यासा आसू बहाते देखा !

मेने एसा भी दिवाली देखा !
मेने एसा भी दिवाली देखा !
विजय गिरी

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