इन पलकों से अब कोई अश्क छलकता ही नहीं !
जाने क्यों इस दिल में अब कोई दर्द उठता ही नहीं !
जाने क्या हो गया मुझे यारो इस दिल में अब कोई
ख्वाब पलता ही नहीं !
बहुत देखे इस दिल ने ख्वाबो को पर रेत का कोई
महल टिकता ही नहीं !
जी रहा था मै ख्वाबो की दुनिया में पर बंद मुट्ठी
में भी रेत रुकता ही नहीं !
देखा जब मेने दुनिया को उसी की नजरो से
तो पता चला कोई दर्द को समझता ही नही !
बीच भवर में जो थाम ले कोई कस्ती ऐसा शख्स
अब कोई मिलता ही नहीं !
देखे है मेने उजरते हुए बागो को इसलिए
इस दिल में अब कोई ख्वाब पलता ही नहीं
रोई है इतनी ये मेरी आखे की अब
कोई आंसू छलकता ही नहीं !
विजय गिरी
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