Sunday 25 September 2011

ये क्या सीतम हुआ



उन्हें चाहने का वाह क्या दर्द मिला 
बची हुई ज़िन्दगी को गमो से भर दिया !

जीने की ख्वाइश तो हमने छोड़ ही दी थी !
मरने भी ना दिया उन्होंने असा ज़ख्म दिया !

बसा लिया उन्होंने तो अपने अरमानो का 
आशियाना !
हमें तो अपनों से भी बे-घर किया !
रखा था उम्हे जहा संभल के वही 
दर्द दिया !

ले लिया था वादा उन्होंने ता-उम्र  साथ 
निभाने का !
खुद ही बैठ गए किसी और कसती में 
जो पानी में थोडा सा कम्पन हुआ !

भर गए मेरी ज़िन्दगी को वो तो गमो से 
उन्हें चाहने का ये क्या सीतम हुआ !
            
               विजय गिरी

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