Sunday 11 September 2011

हे नारी तुम्हे मेरा प्रणाम




सुकून मीलता है उस मैली आचल में जहा 
      सारा प्यार उभर आता है !
 अपने एक-एक बूंद से जो सीचती हमें वो 
      आचल माँ का कहलाता है !


 सर पे रहता बहना का हाथ  तो दुआ 
         खुद लग जाती है !
 देख सावन में बहन के हाथो की मेहँदी 
       मौत भी डर जाती है  !

 छल-कपट ना कोई सवार्थ हर दुःख में
 दे जो साथ वो ममता की मूरत तू नारी
          ही कहलाती है  !

हे जननी-हे नारी किस भाषा में करू 
     वयाख्यान मै तुम्हारी  ?
   शब्द कम पड़ जाते है !
  नत-मस्तक ये शीस मेरे हो जाते है  !

         विजय गिरी


No comments:

Post a Comment