Thursday 15 September 2011

ख़ुशी के पल





ये जिंदगी तो है एक मिट्टी का खिलौना 
जाने कब ये टूट जाय  !
खुशियों के ये पल गुजार लो हँसते-गाते 
जाने कब ये खुशिया रूठ जाय  

यादे खूब सताएगी जब ये खुशिया रूठ 
जाएगी  !
समेट लो अपने दामन में इन छोटी-छोटी 
खुशियों को गम तो जिंदगी भर साथ निभाएगी  !

साथ रहती है ख़ुशियाँ प्यार निभाने में 
हर आशु बहता है किसी के रूठ जाने में !
गुजार जाती है जिंदगी रूठने-मानाने में 
और ज़िन्दगी भी कम पड़ जाती है  दोस्तों 
वफ़ा निभाने में  !

 विजय गिरी

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